हे आत्मदेव, आपके चैतन्यदेव के स्वरूप की लीला अलौकिक और अद्भुत है। मुनिराज चैतन्य के बाग में क्रीड़ा करते-करते कर्म के फलों का नाश करते रहते हैं। बाह्य में इस संसार से उन्हें जो भी आसक्ति थी, उसे तोड़कर वे तो अपने निज-स्वरूप में लीन हो जाते हैं। वास्तव में चैतन्य-स्वरूप ही उनका आसन होRead more