एक गांव में छः जन्मजात अन्धे रहते थे। एक बार गांव में पहली बार हाथी आया।
अंधो ने हाथी को देखने की इच्छा जतायी।
तब वे अपने एक सामान्य नेत्र वाले मित्र की सहायता से हाथी के पास पहुँचे।
सभी अंधे स्पर्श से हाथी को महसूस करने लगे।
1. पहले अंधे ने कहा कि हाथी अजगर जैसा होता है।
2. दूसरे नें कहा नहीं, हाथी तो भाले जैसा होता है।
3. तीसरा बोला, हाथी स्तम्भ के समान होता है।
4. चौथे नें अपना निष्कर्ष दिया कि हाथी पंखे समान होता है।
5. पांचवे ने बताया कि हाथी दीवार जैसा होता है।
6. छठे ने कहा कि हाथी तो रस्से समान ही होता है।
अपने अनुभव के आधार पर अड़े रहते हुए प्रत्येक अँधा अपने अभिप्राय को ही सही बताने लगा और फिर वे सब आपस में बहस करने लगे।
उनके ज्ञानी मित्र ने उन्हें बहस करते देख कहा कि तुम सभी अपनी-अपनी अपेक्षा से सही हो, किन्तु वास्तव में समग्र रूप से हाथी का विवेचन करने पर तुम सभी अंधे गलत ही हो।
1. हाथी की सूंढ को पकड़ने वाले को हाथी अजगर जैसा ही प्रतीत होगा।
2. हाथी के दांत से हाथी भाले के समान ही महसूस होगा।
3. हाथी के पांव से खंबे हाथी भाले के समान ही महसूस होगा।
4. हाथी के कान से हाथी पंखे के समान ही लगेगा।
5. हाथी के पेट स्पर्श करने वाले को हाथी दीवार जैसा ही लगेगा।
6. हाथी की पूँछ की अपेक्षा से हाथी रस्से के समान ही लगेगा।
यदि सभी अभिप्रायों का समन्वय कर दिया जाय तो जैसा कि सच में हाथी होता है, वैसा ही हाथी का आकार उभर सकता है।
इसी तरह आपका आत्म धर्म या जैन धर्म भी चैतन्य-आत्मा का अनेकांत-मय स्वरुप ही बताता है,
लेकिन अपने चैतन्य स्वरुप को खुद ही देखने की द्रष्टि न होने से इस संसार के लोग अंधे के समान ही आचरण कर रहे हैं.
कोई व्यक्ति अगर किसी एक अभिप्राय को ही सही मानता है, तो उसका यह दृष्टिकोण एकांतिक होकर मिथ्या ही होता है.
लेकिन सभी दृष्टिकोणों का सम्यक विवेचन करने पर जो निष्कर्ष आता है, वही अन्तिम सत्य होता है.
इसलिए इस सत्य को जानने वाला ज्ञानी महात्मा चैतन्य ज्योति-स्वरुप परमात्मा को पाकर लोक के शिखर पर बैठ जाता है.
क्या अब आप भी ज्ञानी महात्मा बन चैतन्य ज्योति-स्वरुप परमात्मा को पाकर लोक के शिखर पर बैठना चाहेंगे?
आध्यात्मिक चर्चा : सर्वोत्क्रष्ट चर्चा
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